नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-1

कहानी पूरी तरीके से काल्पनिक है। इसका किसी से भी कोई लेना-देना नहीं है। नागपत्री एक रहस्य सीजन 2 पढ़ने से पहले आप लोग, जिन्होंने इसे पढा नहीं है, इसका सीजन-1 पढ़ लीजिए, तो आपको यह कहानी अच्छे से समझ आ जाएगी। साथ ही साथ मैं सारे पाठकों का तहे दिल से धन्यवाद करती हुं।जिन्होंने (नागपत्री एक रहस्य सीजन-1)को इतना स्नेह दिया। जो उपविजेता में चुनी गईं। आशा करती हूं कि (नागपत्री एक रहस्य सीजन-2) के साथ भी आप लोग अपना स्नेह ऐसे ही बनाए रखोगे।🙏🏻🙏🏻


कदंभ से मिलना चित्रसेन जी के आदेश का पालन करना किसी अश्व का उत्तम संत और गुरु की तरह ज्ञान देना और एक अनोखी दुनिया के बारे में जानकारी मिलना, लक्षणा के लिए सब कुछ नया था और उसे उत्साह से भर देने वाला भी था।

कल तक जिन बातों को उसने सिर्फ कहानियां और किताबों में पढ़ा था, वह वास्तविकता में भी हो सकती है। यह आज उसने पहली बार देखा क्योंकि आजतक किसी अश्व को इस तरह प्रवचन देते सिर्फ और सिर्फ कार्टून, चित्रों और कॉमिक्स में ही देखा था, और जिनका वर्णन सिर्फ और सिर्फ उत्तम शास्त्रों में ही मिलता था।

लक्षणा सोच रही थी कि जब उन प्राचीन रहस्यमई किताबें (शास्त्र और वेद पुराण) में लिखा हुआ एक छोटा सा सत्य जब उसने युद्ध अपनी आंखों से देखा, तब तो वे शास्त्र वेद और पुराण में लिखी हुई हर बातें शत प्रतिशत सही होंगी, और और जब उसका स्वप्न महज एक कल्पना नहीं वास्तविक है तो इसका मतलब उस तक पहुंचने के दरवाजे भी ठीक उसी प्रकार खुलते होंगे, जैसे कदंभ अश्व ने बताया, लेकिन भला इस संसार में ऐसा कोई ज्ञानी होगा जो उसके सवालों का जवाब दे पाएगा।

क्या कोई उसे उतने ही पूर्ण विश्वास से मन के बवंडर से निकाल सटीक राह पर चलने और लक्ष्य प्राप्त करने में मदद कर पाएगा, यदि हां तो उसकी खोज कैसे की जाये, तभी लक्षणा के दिमाग में आया कि उसके खुद दादाजी तो दिन रात थोड़ा सा भी समय मिलने पर धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते रहते हैं, तब क्यों ना उन्हीं से पूछा जाए, शायद कोई रास्ता मिले तब यही सोच वह अपने दादाजी के कमरे में गई।

उस समय उसके दादा जी (सुनील जी) अग्नि पुराण हाथ में ले किसी विशेष पन्ने को बार-बार उलट-पुलट कर पढ़ रहे थे, लेकिन किसी अंतिम निर्णय पर ना पहुंच पाने के कारण थोडे चिंतित थे, लेकिन तभी अपने कमरे में लक्षणा को आया हुआ देख वे उसे पास बुलाकर बड़े प्रेम से कहने लगे। क्या हुआ लक्षणा?? कोई चिंता का विषय है क्या?? थोड़े परेशान लग रहे हो, कोई समस्या हो तो बेशक बताओ।

उस पर लक्षणा दादा जी के पास जा कहने लगी, अगर यही बात मैं आपसे कहूं तो आपका क्या जवाब होगा?? इस बात पर अचानक दादाजी के मुंह से निकल पड़ा।

"आग्नेय हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः"

मतलब क्या बोले दादाजी ?? मतलब अग्नि पुराण ही स्वयं में ऐसा पुराण है, जिसमें सभी विद्याओ को प्रदर्शित किया गया है। क्या यह सही बात है यदि हां तो कैसे?? और क्यों?? आखिर क्या एक ही शास्त्र संपूर्ण ज्ञान दे पाने में सक्षम है??

तब दादाजी मुस्कुराकर कहने लगे नहीं बेटा ऐसा नहीं है, सभी शास्त्र अपना अपना विशेष स्थान रखते हैं, लेकिन मनुष्य धर्म कहता है कि वह जिस भी शास्त्र का अध्ययन करें, उसकी संपूर्ण जानकारी को विधिवत् और बिना शंका के ग्रहण करें, उसकी सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी भी और किसी भी शास्त्र का एक पन्ना भी हमारे एक मनुष्य जीवन को परिवर्तित करने में पूर्ण रूप से सक्षम है ।

लेकिन फिर भी मैं इस पुराण को इसलिए बार-बार देख रहा हूं, क्योंकि इसमें हर प्रकार की जानकारी लगभग समाहित है। इसके लगभग "383" अध्यायों में अनेक अनेक विषय लिखे गए हैं,

जिसके अंतर्गत सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर मंत्रशास्त्र, वास्तुशास्त्र, मंदिर निर्माण, देवताओं की प्रतिष्ठा, उपासना, भूगोल, ज्योतिषशास्त्र, राजनीतिक विवरण, राजधर्म, धनुर्वेद, आयुर्वेद और प्राचीन अर्थशास्त्र के साथ सैनिक शिक्षा पद्धति, छंद शास्त्र, अलंकार शास्त्र, व्याकरण, कोष, वृक्षायुर्वेद, गीतासार, वेदांत ज्ञान जैसे अनेकों जानकारियां निहित है।

मैं वर्तमान में इस पुराण को किसी विशेष उद्देश्य से हाथ में लेकर कुछ चिंता कर रहा था, क्योंकि अग्नि पुराण के "383" अध्याय जिनमें "ग्यारह हजार चार सौ पचहत्तर"श्लोक है, और जिसे स्वयं अग्निदेव महर्षि विशिष्ट को सुनाया था, इसलिए इसे "अग्नि पुराण" कहते हैं।

इसमें सर्ग , प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन होने के कारण इसे "पंचलक्षण पुराण" भी कहते हैं, इस पुराण में प्राचीन भारत की परा और अपरा विधाओं का इतना सुंदर वर्णन किया गया कि हम इसे विशाल "विश्वकोष"भी कह सकते हैं,

यह पुराण मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है, जिसके पहले भाग में ब्रह्मा विद्या का विस्तृत विवरण जिसको सुनने से मनुष्य, पशु पक्षी और समस्त प्राणियों के साथ देवतागण भी समृद्धि प्राप्त करते हैं, इस पुराण में "चौसठ योगिनीयों" का भी विस्तार वर्णन किया गया है।

काल की गणनाओं का तरीका और साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के व्रत, एकादशी, दशमी, प्रतिपदा और शिखिप्रत इत्यादि के महत्व को समझाया है, इसमें भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा के साथ सृष्टि का जन्म, अग्नि कार्य, श्लोक मुद्रा आदि के लक्षण सर्वदीक्षा की विद्या और अभिषेक इत्यादि की समीक्षा बताई गई है।

इसी के अंतर्गत मंडलों के लक्षण, कुशामापार्जन, पवित्रारोपण, विधि विधान, देवालओ के विधि-विधान, शालिग्राम की पूजा और मूर्तियों का विवरण सर्व देवों की प्रतिष्ठा, ब्रह्मांड का वर्णन, गंगा नदी और अनेकों तीर्थों का माहात्मय बताया गया है....

दादा जी कहते जा रहे थे कि अचानक उन्हें बीच में ही टोकते हुए लक्षणा कहने लगी, बस इतना ही मैंने सिर्फ आपसे एक छोटी सी बात पूछी और आपने इतना सारा विस्तारपूर्वक बता दिया, इतना पढ़ने और समझने में तो मुझे पूरी उम्र बिता देनी होगी। रहम करे.. इस नादान बच्ची पर रहम करे। लक्षणा का हाथ जोड़कर खड़े होना दादाजी को बड़ा मन भाया, और उसके सिर पर हाथ रख कर बोलो, खुश रहो मेरी बच्ची, तु यूं हाथ ना जोड़कर ना जाने क्यों एक अलग ही प्रतिमा लगती है।

तुझमें तेरा आभामंडल सारी परेशानियों को दूर कर देता है, देख मैं कब से एक बात में उलझा हुआ था, लेकिन तेरे आते ही एक पल में ही जैसे सारी समस्या हल हो गई।

थोड़ा असमंजस था जो अब दूर हो गया, और किसी भी शास्त्र की सारी परिभाषा समझने के लिए एक पल ही पर्याप्त होता है, या फिर पूरा जीवन बीत सकता हैं, निर्भर करता है एक उत्तम गुरु की प्राप्ति कर।

यदि गुरु उत्तम प्रवृत्ति का हो, जिसमें ईश्वरीय गुण पूर्व से ही समाहित हो तो, वह पलभर में समस्या का अंत कर देगा, अन्यथा शास्त्र हाथ में पकड़कर आपको किसी मरुस्थल में छोड़े हुए प्राणी की तरह प्यासा अर्थात ज्ञान की तलाश में भटकने के लिए छोड़ देता है

क्रमशः....

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4 Comments

Arti khamborkar

19-Dec-2024 03:58 PM

v nice

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Mohammed urooj khan

21-Oct-2023 12:02 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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RISHITA

20-Oct-2023 10:43 AM

Amazing

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